जनप्रतिनिधित्व की पाठशाला माने जाने वाले निकायों के चुनाव में टिकट की दावेदारी को लेकर जोशीले युवाओं और अनुभवी नेताओं में घमासान छिड़ा हुआ है। प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस में युवा और अनुभवी दावेदार एक-दूसरे के आमने-सामने हैं और टिकट के लिए दावेदारी के पक्ष में अपने-अपने तर्क गढ़ रहे हैं। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा में टिकट के दावेदार मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश महामंत्री संगठन के अलावा क्षेत्रीय सांसद और विधायक के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के दावेदार प्रदेश अध्यक्ष के साथ पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ नेताओं के पास अपनी फरियादें सुना रहे हैं। राजनीतिक दलों के पर्यवेक्षकों और नेतृत्व को खासी मुश्किल में डाल दिया है। ऐसे में युवाओं के पास जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए निकाय चुनाव ही एक अवसर है। यहां भी अनुभवी नेताओं को प्राथमिकता मिलेगी तो युवाओं को मौका कब मिलेगा? अनुभवी दावेदारों के अपने पक्ष में अलग तर्क हैं। उनका कहना है कि युवाओं के पास चुनाव लड़ने के आगे कई अवसर हैं। लेकिन उम्र अधिक होने की वजह से उनके पास चुनाव लड़ने के अवसर बेहद सीमित हैं। दलों में लंबे समय तक सक्रिय रह कर जनता से जुड़ने का अनुभव उनके पास युवाओं से अधिक है। सदस्य सभी के सामने टिकट के दावेदारों के ये कॉमन तर्क सामने आए हैं। ऐसे में उम्मीदवारों का चयन उनके लिए आसान नहीं है।
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