सोशल मीडिया पर हर समय ऑनलाइन रहने के साथ मोबाइल पर गेम और कार्टून देखने की लत ने भी बच्चो का मानसिक विकास रोकने का काम किया है। देबच्चों और किशोरों को इंटरनेट के नशे की गिरफ्त में लाया है। शाहजहांपुर के राजकीय मेडिकल कॉलेज की मानसिक रोग विभाग की ओपीडी में रोजाना ही चार से पांच बच्चे किशोर आते हैं। व्यवहार चिकित्सा के जरिये उपचार कर मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाया जाता है। कोरोना काल खत्म होने के बाद से ऑनलाइन पढ़ाई का झंझट खत्म हो चुका है। बच्चों से लेकर किशोर-किशोरियां तक मोबाइल छोड़ने को तैयार नहीं हैं। अधिकतर समय गेम खेलते हैं अथवा कार्टून देखते हैं। परिवार से बात करने के बजाय उनका समय मोबाइल पर ही बिताते हैं। कुछ क्षण की मोबाइल से दूरी होने पर घबराहट व तनाव होने लगता है। बच्चों का उपचार व्यवहार चिकित्सा के माध्यम है। इसमें दवा की आवश्यकता नहीं होती है। मनोचिकित्सा, काउंसलिंग के जरिये उनके मोबाइल की लत को दूर किया जाता है।एक व्यक्ति का 12 साल का बेटा मोबाइल पर कार्टून देखने का लती हो गया। मोबाइल नहीं देने पर आक्रामक हो जाता है। घर का सामान फेंकने लगता है। मामला –
मोबाइल फोन की लत बच्चों को कर रही मानसिक बीमार, न करें नजरअंदाज
तिलहर के एक गांव की महिला अपनी 15 वर्षीय बेटी को लेकर अस्पताल में पहुंची। कोरोना के समय ऑनलाइन पढ़ाई की। तब से बेटी हर समय मोबाइल पर गेम खेलती रहती है। इंटरनेट बंद करने पर बेटी का व्यवहार आक्रामक दिखा।