उत्तराखंड में स्थानीय बोली, भाषा को बढ़ावा देने के नाम पर 14 साल पहले बना भाषा संस्थान खुद का उत्थान नहीं कर पा रहा है। वर्षों बाद भी मुख्यालय का अता-पता नहीं है। संस्थान के एक्ट में इसका मुख्यालय देहरादून में बनाने का जिक्र है। त्रिवेंद्र सरकार में इसको ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में बनाए जाने की घोषणा की गई, लेकिन अब तक न अस्थायी राजधानी देहरादून, न ही ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में इसका अपना मुख्यालय वजूद में आ पाया। संस्थान स्थापना के बाद से ही अस्थायी भवन और अस्थायी कर्मियों के भरोसे ही चल रहे हैं। वर्ष 2020 में त्रिवेंद्र सरकार में गैरसैंण में संस्थान के मुख्यालय की घोषणा के बाद भूमि के लिए सरकार ने 50 लाख की व्यवस्था की। राज्य गठन के 24 साल बाद भी अपनी बोली-भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए।
स्थानीय बोली भाषा को बढ़ावा देने के लिए संस्थान बना….नहीं हुआ कोई फायदा
